इन दिनों मीडिया तथा कुछ लोग खूब हो-हल्ला मचा रहे हैं कि योग-गुरु "बाबा रामदेव" का भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद करना; एक राजनीतिक चाल का हिस्सा अथवा एक स्वार्थपरक कृत्य है. मैं प्रस्तुत कविता के माध्यम से इसका विरोध करता हूँ..
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कोई अनशन करता, भूखा मरता;
कोई घर बैठा, मौज मनाता है;
तह तक जा कर देखो गर ,
तब मर्म समझ में आता है....
मित्र हो भूले तुम मानवता,
यह बेरुखी कैसी है;
जब बलिदान का अवसर आया,
पलटी मति जो ऐसी है....
क्रूरता-भय-आतंक-दमन;
नहीं चलेंगे भारत में;
सत्पुरुषों को आज नमन,
अभय रहे जो भारत में.....
साधु-सज्जन-संतों से जो,
बेकार में उलझा करते हैं;
वे मूढ़मति विकराल काल को ,
स्वयं निमंत्रित करते हैं....
दंड मिले उन दुष्टों को,
वैभव दीनों का हरण किया;
सूखी रोटी को तरसे जन,
तब मखमल पर शयन किया...
वह धन-गौरव-सम्पदा हमारी,
मेहनत की सारी पूंजी है;
वापस लाने की अब तैयारी,
वह विकास की कुंजी है......!!
स्वार्थ-कूप से बाहर आओ,
स्वच्छ वतन के वसन रहें;
देश-प्रेम का भाव जगाओ,
तब खुशहाली अमन रहें.......!