देखो दीवाली आई आज,
हर्षित नगर-ग्राम-समाज,
छुट्टी पर दैनिक काम-काज,
देखो दीवाली आई आज....
बहती उल्लासमयी रसधार,
घोली उमंगों ने निखार,
गुन-गुन गाती 'बौराई' बयार,
घर-घर पहुँची 'उजली' बहार....
जगमग-जगमग संसार लगे,
बल्ब-ट्यूब नव-दीप जले,
दुःख-दर्द-अंधेरे भाग चले,
सुख-शान्ति-सवेरे खिले-खिले...

'बाती' दीये की सहचरी,
जलती पल-भर भी ना डरी,
सद्-भाव समर्पण से भरी,
पर-हित को प्रेरित करे परी....
बड़े, रॉकेट-बम चला रहे,
दीपों की लड़ियाँ सजा रहे,
मन स्वर्णिम घड़ियाँ बसा रहे....


मोदक-बर्फी-रसगुल्ले अब,
प्लेटें लायीं, नई-नवेली छब,
कहो छुटपन धरता धीरज कब,
चट-पट चट जाते बालक सब....
कहो छुटपन धरता धीरज कब,
चट-पट चट जाते बालक सब....