आतंक के साम्राज्य में, बेचारी मानवता रोती,
भार ऐसे कुकृत्यों का, कैसे वसुधा यह ढोती...
भाई आपस में लड़ते हैं,
लड़-लड़, कट-कट कर मरते हैं;
गुल्शन में आग लगाते हैं,
मूढ़ हैं, संसार जलाते हैं....
मानव को मानव समझें सब,
विधि की सर्वोत्तम रचना है;
आतंकवाद इस लोक की सबसे,
करुण-दुखद-दुर्घटना है....
प्रतिकार करें, आवेश क्षणिक ये,
सुख-स्वप्नों को, भस्म करे;
गहन-मनन-चिंतन हो तब,
संगठित सभी प्रयत्न करें.....
बंधुत्व-एकता-मंत्र प्रबल,
मांग समय की भाई;
समझो गर हम हुए सफल,
धरती पर जन्नत पाई.....!!
1 comment:
सुंदर सार्थक विचार रोहित ........पर हम सब समझें तो ...
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