रणधीर बढो, गंभीर बढो,
चढ़कर शिखरोँ पर पग धर लो;
धीर बढो, तुम वीर बढो,
अड़कर तूफानोँ को हर लो;
सचिन-सरीखे रत्न जहाँ,
सम्मिलित संगठित यत्न जहाँ;
प्रबल- प्रखर प्रयत्न जहाँ,
योँ कुशल चपल दल और कहाँ..
चढ़कर शिखरोँ पर पग धर लो;
धीर बढो, तुम वीर बढो,
अड़कर तूफानोँ को हर लो;
सचिन-सरीखे रत्न जहाँ,
सम्मिलित संगठित यत्न जहाँ;
प्रबल- प्रखर प्रयत्न जहाँ,
योँ कुशल चपल दल और कहाँ..
आ गई घड़ी, लंका मेँ आग लगा दो;
कनक सिँहासन पर अधिकार जमा लो..
समर भूमि मेँ फिर अपने,
जौहर की झलक दिखा दो;
बाधाएँ बड़ी, अंधियारे घने,
पौरुष का दीप जला लो;
बाधाएँ बड़ी, अंधियारे घने,
पौरुष का दीप जला लो;
विध्वंस मचे, सब भंग-भंग,
शत्रु-दर्प कर खंड-खंड, ध्वज लहरा लो..
शत्रु-दर्प कर खंड-खंड, ध्वज लहरा लो..
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