आज धरा के पावन आँगन,
फिर से उषा मुस्काई है;
किरणों की सौगात से रौशन,
डाली-डाली लहराई है...
डाली-डाली लहराई है...
झूम गई अमवारी अपनी,
फुलवारी भी निखर गई;
फुलवारी भी निखर गई;
तितली रानी, कोकिला सयानी;
इतरा-इतरा शरमाई हैं...
और सुनहली धूप का संग है;
सरिता के तन-मन को छूती,
प्यारी पवन बड़ी भायी है...
हृदयों में उल्लास जगा,
आशाओं का संचार हुआ;
दूर वो दुनिया पास बुलाती,
मन की मिटी तन्हाई है...!!
किरणों की सौगात से रौशन,
डाली-डाली लहराई है...
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