दबे पाँव चुपके हवा पास आई,
लगा वो तुम्हारा संदेशा हो लाई;
झोली थी खाली, झलक कोई ना थी;
न आहट, न खुशबू , खबर कोई ना थी....
जो पूछा पता, चाँद की चाँदनी से;
वो बोली ना जानूँ, मैं इस रौशनी को;
खिड़की के पल्ले, किए बंद तुमने
या शायद सखी को जलाया हो तुमने....
उषा क्या, निशा भी, तुम्हें ना बताए;
उलझन हमारी सुलझ कैसे पाए;
बादल तो रूठे, बारिश भी झूठी;
पल-पल अगन बन, तन-मन
जलाए....
कोई रास्ता हो जो तुमसे मिलाए,
तो हँसकर बढ़ेंगे, झुकेंगी बाधाएँ;
तले अपने दाँतों के उंगली दबाए;
दिशाएँ चकित, चूम लेंगी
हवाएँ....
ये बगिया महकती,
"बहार" तुम जो आती;
उमंगें चहकतीं,
तुम्हें घेर गातीं;
नयन प्यासे मिलते,
प्रणय-पुष्प खिलते;
कई दीप चाहत के
मुस्काते-जलते....
लगा वो तुम्हारा संदेशा हो लाई;
झोली थी खाली, झलक कोई ना थी;
न आहट, न खुशबू , खबर कोई ना थी....
जो पूछा पता, चाँद की चाँदनी से;
वो बोली ना जानूँ, मैं इस रौशनी को;
खिड़की के पल्ले, किए बंद तुमने
या शायद सखी को जलाया हो तुमने....
उषा क्या, निशा भी, तुम्हें ना बताए;
उलझन हमारी सुलझ कैसे पाए;
बादल तो रूठे, बारिश भी झूठी;
पल-पल अगन बन, तन-मन
जलाए....
कोई रास्ता हो जो तुमसे मिलाए,
तो हँसकर बढ़ेंगे, झुकेंगी बाधाएँ;
तले अपने दाँतों के उंगली दबाए;
दिशाएँ चकित, चूम लेंगी
हवाएँ....
ये बगिया महकती,
"बहार" तुम जो आती;
उमंगें चहकतीं,
तुम्हें घेर गातीं;
नयन प्यासे मिलते,
प्रणय-पुष्प खिलते;
कई दीप चाहत के
मुस्काते-जलते....
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