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Tuesday, October 9, 2012

पलकों का शामियाना




पलकोँ का ये शामियाना तेरा,
बहुत खूब ये आशियाना तेरा...

काजल की काली चटख ये घटा,

रंग इनसे भरूँ जिंदगी मेँ सदा,
बिजलियोँ सी चमक, रौशनी सी दमक,
मैँ निखरता रहूँ देख तेरी अदा,

इशारोँ मेँ सब कुछ बताना तेरा,

छुपे राज़ दिल के जताना तेरा .... 
                 पलकोँ का ये शामियाना तेरा ...


बयान नजरोँ ने झुककर किया हाल-ए-दिल,

सिमट गया शर्म से फिर उठा चेहरा खिल,

नजाकत ये फूलोँ को हैराँ करे,

इबादत उमर मेरी तुमको लगे,
अनोखी महक से बहकती फिजा,
गाती पीहू-सी चहकती हवा,

आरजू-जुस्तजू यूँ जगाना तेरा,

तरन्नुम मेँ यूँ गुनगुनाना तेरा...
                  पलकोँ का ये शामियाना तेरा...!!

स्कूल की यादें




इस आँगन में खेले हमने, जाने कितने खेल,
धमाचौकड़ी, छुआ-छुई से चोर-सिपाही-रेल...

सैर सुहानी, रुत मस्तानी; खूब चली वह नाव, 

अब याद आती झोंकों वाली, मीठी शीतल छाँव...

कोरे कागज़ के पन्नों पर, गीत मधुर जीवन के,

रचे गए सब यहीं उजाले, स्नेह-सुमन उपवन के...

आशीषों की पुण्य धार में , भींग सींचे हैं सरसे,

तार-तार, कण-कण मेरे, सौभाग्य-सजीले हरषे...

वह स्वच्छंद उड़ान, होठों की मुस्कान,



नहीं मिटेंगे मन-क्यारी से, बीजों के ये निशान...

भीकू






दूर उस चौराहे पर भीकू ठेला लगाता था,
याद है कुछ? जी हाँ, वही जो समोसे बनाता था;
साथ में पकोड़े-जलेबियाँ भी तलता था,
फुर्सत में हथेली पर खैनी मलता था....

दो रुपयों में एक समोसा,
दस में पाव जलेबी....
बच्चों का वही एक भरोसा,
बोली उसकी अलबेली...

आलू-मटर नहीं बाबू वह,
खुद को रोज उबालता;
तपकर-खपकर पकवानों में,
जीवन का रंग डालता....

दमे से दोस्ती पुरानी हो गई थी,
बेटियाँ भी तो सयानी हो गईं थीं;
खाँसता वह हांफता, चूरन-चबेने फांकता,
दर्द सारा आप ही में ढाँपता....

तल गई उसकी जवानी,
मानो बुढ़ापा ढल गया;
हाय ! कैसी जिंदगानी,
आग में जल-गल गया.... 

टूटी हुई एक झोपड़ी गुमनाम थी,
दफ्तरी बाबुओं को अनजान थी;
दाल-रोटी की जुगत में पिस गया,
खिंचता रहा खुद, एक दिन वह घिस गया....

बबलू-डब्लू स्कूल नहीं जाते अब,
बापू का ठेला वही चलाते अब...
उनके बदन भी तेल के छाले सहने लगे हैं,
लोग लावारिस उन्हें कहने लगे हैं....

दिल्लियाँ जाने कहाँ खोई हुई हैं,
कान फोड़ो, घोटालों में सोई हुई हैं,
दूध की भी लाज बाकी ना रही,
सफेदपोशों, कालिख कभी जाती नही....!!

Friday, December 30, 2011

नए वर्ष तुम आए

दस्तक देता दरवाजे पर,
    यह कौन अतिथि आया;
घने कोहरे से झाँका तो, 
      वह अजनबी मुसकाया;

राम-रहीम हुई उससे,
       मैंने भीतर बैठाया,
चाय पियोगे या कॉफी,
        मैंने आतिथ्य निभाया;

          
देवदूत-सी आभा मुख पर,
   "नव-वर्ष" नाम बतलाया,
झोली में समेट कई सौगातें,
    वह अलबेला लाया;
                    
झट एक पिटारा खोल, 
     जादूगर ने करतब दिखलाया,           
 आशाएँ खिल उठीं, जगी उमंगें;
        जीवन निखरा हर्षाया;
 


ScrapU

वह चेतना-वाहक, सृजनशील मन-भाया,
       निष्पक्ष निरीक्षक जिसने, नित कर्म-मार्ग दिखाया;

स्वच्छंद विहग-सा मन उड़ता, 
नूतन आकाश है पाया,
          
 स्वर संवरे, उल्लास जनित; 
       इक गीत नया-सा गाया ...!!

Saturday, December 24, 2011

रुपहली रात





तारे चमकेँ, जुगनू दमकेँ;
   चंदा की बारात,

आँखेँ मलके, दुनिया देखे, 
    सजी रुपहली रात...!!

डोली से चाँदनिया झाँके,
    चोरी-से चुपके मुख ढाँपे;

मुस्कान मिली सौगात;
    सजी रुपहली रात....!!

ओस-वृष्टि, आशीष झरे;
     मोती-माणिक सम बिखरे,

युगोँ-युगोँ का साथ,
        सजी रुपहली रात...!!

महक-बहक हवा चली,
     सखी दुल्हन की मनचली;
          
कानोँ मेँ कह वह बात,
        सजी रुपहली रात....!!

गगन मगन, मधुर मिलन,
       पुलक उठा, भरे नयन;
     
 उमंग नए जज्बात,
          सजी रुपहली रात....!!
   
 मुग्ध धरा यह दृश्य देख,
          रोमांचित-सी, हर्षातिरेक;

  चमके डाली हर पात,
        सजी रुपहली रात...!!


Tuesday, October 25, 2011

आई दीवाली




       देखो दीवाली आई आज,
       हर्षित नगर-ग्राम-समाज,
       छुट्टी पर दैनिक काम-काज,
        देखो दीवाली आई आज....




   बहती उल्लासमयी रसधार,
    घोली उमंगों ने निखार,
     गुन-गुन गाती 'बौराई' बयार,
       घर-घर पहुँची 'उजली' बहार.... 




                               जगमग-जगमग संसार लगे,
                     बल्ब-ट्यूब नव-दीप जले,
                     दुःख-दर्द-अंधेरे भाग चले,
                     सुख-शान्ति-सवेरे खिले-खिले...



'बाती' दीये की सहचरी,
जलती पल-भर भी ना डरी,
सद्-भाव समर्पण से भरी,
पर-हित को प्रेरित करे परी.... 






                  छुटके फुलझडियाँ जला रहे,
            बड़े, रॉकेट-बम चला रहे,
            दीपों की लड़ियाँ सजा रहे,
            मन स्वर्णिम घड़ियाँ बसा रहे....







                       

                                                               
                                                          
                    मोदक-बर्फी-रसगुल्ले अब,
                     प्लेटें लायीं, नई-नवेली छब,
                                      कहो छुटपन धरता धीरज कब,
                                        चट-पट चट जाते बालक सब....



                                                       




        दाता दीपक ना मुरझाए,
        माता धन-वैभव ना जाए,
         आनंदोत्सव यों लहराए,
         जन-मन झूमें, नाचे-गाएँ....!!


Tuesday, October 18, 2011

ख़्वाबों की परी











  
एक नशा दिल पे जैसे छा जाए,
जब कभी आपका ख़याल आए...









  

   

सामने हुस्न के, चाँदनी भी जले,
जब भी आए, आपकी मिसाल आए









 


जिंदगी स्याह,  काली बेरंग थी,
आप आए तो, रंग-गुलाल आए....







 




कोई मकसद नहीं, वजह ना थी,
क्यों जिएँ, ऐसे कुछ सवाल आए...















नूर तुमसे है, सादगी तुमसे,               
 जादूगर, फन ये तुमको, कमाल आए.....!!

Friday, October 14, 2011

प्रणय-सूत्र

दबे पाँव चुपके हवा पास आई,
लगा वो तुम्हारा संदेशा हो लाई;

झोली थी खाली, झलक कोई ना थी;            
न आहट, न खुशबू , खबर कोई ना थी....

  

जो पूछा पता, चाँद की चाँदनी से;
वो बोली ना जानूँ, मैं इस रौशनी को;

खिड़की के पल्ले, किए बंद तुमने
या शायद सखी को जलाया हो तुमने....








उषा क्या, निशा भी, तुम्हें ना बताए;
  उलझन हमारी सुलझ कैसे पाए;

   बादल तो रूठे, बारिश भी झूठी;
    पल-पल अगन बन, तन-मन
       जलाए....






कोई रास्ता हो जो तुमसे मिलाए,
 तो हँसकर बढ़ेंगे, झुकेंगी बाधाएँ;

तले अपने दाँतों के उंगली दबाए;
  दिशाएँ चकित, चूम लेंगी
       हवाएँ....







   ये बगिया महकती,
      "बहार" तुम जो आती; 
   
उमंगें चहकतीं,
        तुम्हें घेर गातीं;
   
 नयन प्यासे मिलते,
        प्रणय-पुष्प खिलते;
    कई दीप चाहत के
                                                                 मुस्काते-जलते....





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