इस आँगन में खेले हमने, जाने कितने खेल,
धमाचौकड़ी, छुआ-छुई से चोर-सिपाही-रेल...
सैर सुहानी, रुत मस्तानी; खूब चली वह नाव,
अब याद आती झोंकों वाली, मीठी शीतल छाँव...
कोरे कागज़ के पन्नों पर, गीत मधुर जीवन के,
रचे गए सब यहीं उजाले, स्नेह-सुमन उपवन के...
आशीषों की पुण्य धार में , भींग सींचे हैं सरसे,
तार-तार, कण-कण मेरे, सौभाग्य-सजीले हरषे...
वह स्वच्छंद उड़ान, होठों की मुस्कान,
नहीं मिटेंगे मन-क्यारी से, बीजों के ये निशान...
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