चंदा की बारात,
आँखेँ मलके, दुनिया देखे,
सजी रुपहली रात...!!
डोली से चाँदनिया झाँके,
चोरी-से चुपके मुख ढाँपे;
मुस्कान मिली सौगात;
सजी रुपहली रात....!!
चमके डाली हर पात,
सजी रुपहली रात...!!
मुस्कान मिली सौगात;
सजी रुपहली रात....!!
महक-बहक हवा चली,
सखी दुल्हन की मनचली;
कानोँ मेँ कह वह बात,
सजी रुपहली रात....!!
गगन मगन, मधुर मिलन,
पुलक उठा, भरे नयन;
उमंग नए जज्बात,
सजी रुपहली रात....!!
सजी रुपहली रात....!!
मुग्ध धरा यह दृश्य देख,
रोमांचित-सी, हर्षातिरेक;
चमके डाली हर पात,
सजी रुपहली रात...!!
4 comments:
वाह बहुत सुंदर रचना
आभार !!
मेरी नई रचना ( अनमने से ख़याल )
ओस-वृष्टि, आशीष झरे;
माणिक-मोती सम बिखरे,
युगोँ-युगोँ का साथ,
सजी रुपहली रात...!!very nice.
bahut hi sndar tarike se prastut kiya hai apne ....badhiya
मंगलवार 18/03/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
आप भी एक नज़र देखें
धन्यवाद .... आभार ....
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