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Saturday, December 24, 2011

रुपहली रात





तारे चमकेँ, जुगनू दमकेँ;
   चंदा की बारात,

आँखेँ मलके, दुनिया देखे, 
    सजी रुपहली रात...!!

डोली से चाँदनिया झाँके,
    चोरी-से चुपके मुख ढाँपे;

मुस्कान मिली सौगात;
    सजी रुपहली रात....!!

ओस-वृष्टि, आशीष झरे;
     मोती-माणिक सम बिखरे,

युगोँ-युगोँ का साथ,
        सजी रुपहली रात...!!

महक-बहक हवा चली,
     सखी दुल्हन की मनचली;
          
कानोँ मेँ कह वह बात,
        सजी रुपहली रात....!!

गगन मगन, मधुर मिलन,
       पुलक उठा, भरे नयन;
     
 उमंग नए जज्बात,
          सजी रुपहली रात....!!
   
 मुग्ध धरा यह दृश्य देख,
          रोमांचित-सी, हर्षातिरेक;

  चमके डाली हर पात,
        सजी रुपहली रात...!!


4 comments:

कुमार संतोष said...

वाह बहुत सुंदर रचना


आभार !!

मेरी नई रचना ( अनमने से ख़याल )

Dr.NISHA MAHARANA said...

ओस-वृष्टि, आशीष झरे;
माणिक-मोती सम बिखरे,


युगोँ-युगोँ का साथ,
सजी रुपहली रात...!!very nice.

Anamikaghatak said...

bahut hi sndar tarike se prastut kiya hai apne ....badhiya

विभा रानी श्रीवास्तव said...

मंगलवार 18/03/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
आप भी एक नज़र देखें
धन्यवाद .... आभार ....

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