मुझसे कि कुछ ख़ास लिखो...
देखो मैं छनकर आई हूँ,
चमकीला रंग हृदयों में भरो...
खट्टी इमली का स्वाद लिखो
तितली-पतंग की याद लिखो...
शरारत के एहसास लिखो,
बीते पल का इतिहास लिखो;
निर्मल नीला जल लाई हूँ,
अर्पित उर के उल्लास करो....

मुझमे शोणित-सा जोश भरा,
व्यापक, अनंत आलोक मेरा...
पारस हूँ, बस तुम छू जो लो,
स्वर्णिम कल के तब दर खोलो...
उमंग-तरंग-सी छाई हूँ,
साँसों में यह सब भर लो...
नदिया-सी निरंतर बहती चली,
मानव- गाथा यूँ कहती चली;
पीड़ित पथिकों को आस दिया
साहस-धीरज-विश्वास दिया...
साथी बनकर मै आई हूँ,
मुझ संग सपने साकार करो...!!
2 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (07-06-2020) को "शब्द-सृजन 24- मसी / क़लम " (चर्चा अंक-3725) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह !बेहतरीन 👌
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