Total Pageviews

Blog Archive

Friday, May 6, 2011

हाय बिजली

बिजली रोज हमारे घर पर, इक मेहमां-सी आती है...
थोड़ी देर है रुकती फिर, कल आने को कह जाती है...
                                    

कहा एक दिन मैंने देवी, साथ मेरे तुम रहा करो.. 
यह वियोग न भाता मुझको, दूर ना ऐसे रहा करो..

बोली वो किस-किस घर जाऊं,
कितनों को आबाद करूँ
रसिक कई हैं, लोभी ढेरों;

कैसे इतना श्रृंगार करूँ..

 

सुध तुमको मेरी कब थी, बस यौवन का आनंद लिया..
   काया अब ढलने को आई, कुशल-क्षेम क्या कभी लिया..
     देर नहीं अब भी गर तुम मेरे हित का संकल्प करो,
       मैं तेरी ही हो लूँगी, नित मितव्ययता का पाठ पढ़ो...



अर्चना करूँगा तेरी ही, 
सर्वस्व तुझे ही अर्पित हो,
ध्येय मेरा अब यही कि हरदम,

बचत कि पूँजी अर्जित हो..

No comments:

Powered By Blogger