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आरा से है, लगाव पुराना,
फिर भी मुझे, अलगाव निभाना;
भूल गया मैं, घर क्या होता,
परदेस में जब, कभी ये मन रोता;
पगले को आस बंधाता हूँ,
ढाढस दे, चुप करवाता हूँ;
आरा से है, लगाव पुराना,
फिर भी मुझे, अलगाव निभाना;
भूल गया मैं, घर क्या होता,
परदेस में जब, कभी ये मन रोता;
पगले को आस बंधाता हूँ,
ढाढस दे, चुप करवाता हूँ;
उस नगरी में, तब आयेंगे,
जब पढ़-लिख, कुछ बन जायेंगें;
संकल्प ये दृढ़, विश्वास अटल,
एक दिन अवश्य, हम होंगे सफल;
आशा है, राहें सजी मिलेंगी,
स्वजनों की खुशियाँ छलकेंगी;
तब सबके गले मिलेंगे हम,
यादें ताज़ी कर लेंगे हम;
जलता हुआ ही रखना;
बाग यदि मुरझाएं भी,
इक फूल खिलाए रखना..!
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2 comments:
बहुत सुंदर चित्रमय कविताएं
apki kavitaon ne ghar ki yaden taja kar din.
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