रंग की भाषा, रंग की बोली,
नाम इसी का होली है;
झूमे अबीर-गुलाल संग टोली,
प्रीत की पावन डोली है....
फागुन की बरात रंगीली,
रुत मतवाली, बड़ी नशीली;
भोर किरण करती अठखेली,
दुल्हन-सी धरा, नई-नवेली....
मीठी कोयल की बोली,
कहती कू-कू कर होली है...
रंग की भाषा, रंग की बोली,
नाम इसी का होली है......
पिचकारी से खुशियाँ बह निकलीं,
हर दिल के दर तक जाएंगीं;
मौका पाते ही चुपके से,
कोने में इक समाएँगी....
रंग रिश्तों का छूटे ना,
पैगाम यही तो होली है....
झूमे अबीर-गुलाल संग टोली,
प्रीत की पावन डोली है....
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