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Friday, December 30, 2011

नए वर्ष तुम आए

दस्तक देता दरवाजे पर,
    यह कौन अतिथि आया;
घने कोहरे से झाँका तो, 
      वह अजनबी मुसकाया;

राम-रहीम हुई उससे,
       मैंने भीतर बैठाया,
चाय पियोगे या कॉफी,
        मैंने आतिथ्य निभाया;

          
देवदूत-सी आभा मुख पर,
   "नव-वर्ष" नाम बतलाया,
झोली में समेट कई सौगातें,
    वह अलबेला लाया;
                    
झट एक पिटारा खोल, 
     जादूगर ने करतब दिखलाया,           
 आशाएँ खिल उठीं, जगी उमंगें;
        जीवन निखरा हर्षाया;
 


ScrapU

वह चेतना-वाहक, सृजनशील मन-भाया,
       निष्पक्ष निरीक्षक जिसने, नित कर्म-मार्ग दिखाया;

स्वच्छंद विहग-सा मन उड़ता, 
नूतन आकाश है पाया,
          
 स्वर संवरे, उल्लास जनित; 
       इक गीत नया-सा गाया ...!!

4 comments:

Sunil Kumar said...

स्वच्छंद विहग-सा मन उड़ता, नूतन आकाश है पाया,
स्वर संवरे, उल्लास जनित; इक गीत नया-सा गाया ...
हमारी ओर से भी नव वर्ष की बहुत बहुत शुभकामनायें स्वीकार करें
(कृपया वर्ड वैरिफिकेसन हटा दीजिये)

अजय कुमार झा said...

आपके ब्लॉग का खूबसूरत कलेवर तो मेरे मन को भा गया । वर्ड वेरिफ़िकेशन को हटाने की इल्तज़ा तो हम भी करेंगे ।

Dr.NISHA MAHARANA said...

waah bahut achcha likha hai.

Dr.NISHA MAHARANA said...

word verification kaise htaya mujhe bhi btaiye please......

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